Thursday 5 October 2017

Cow Politics

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#StopCowPolitics
#StopMobLynching
#SaveFaming

गाय-वर्तमान समय का भारतीय राजनीति के संदर्भ में सबसे चर्चित विषय।
पहले यह जान लेना जरूरी है कि गौरक्षा के बारे में बड़ी बड़ी बातें करने वाले संघी विद्वान गाय के बारे में केवल इतना ही जानते है जितना हम बचपन मे अंग्रेजी के एसए में लिखतें थे कि गाय के चार पैर,दो कान ,दो सिंग और एक पूंछ होती है ।इसके अलावा इन्होंने गाय को कभी नजदीक से देखा तक नही होता लेकिन दो और बातें इन्हें बता दी जाती है कि-
         १.गाय हमारी माता है ।
         २.गाय में 36करोड़ देवी देवता निवास करते है
गाय को राजनीति में घसीटे जाने का एक कारण ,उन लोगों का चुप रहना भी है जो इस विषय पर बोलने के असली हक़दार है । औऱ ये चुप इसलिए है क्योंकि उनको कोई सुनता नही ।आखिर मीडिया वाले डिबेट हाउस में किसी अनपढ़ किसान को बिठाकर क्यो अपनी TRP खराब करेगा ?सब ज्ञान तो उन विद्वानों के पास जो है ।
"और जब जब किसी विषय पर ,उस विषय को जानने वाला नही बोलता तब कोई अनजान आकर उस विषय की ही ऐसी-तेसी कर देता है ।भारत की राजनीति भी इसी का शिकार है।"
गाय पर मैं बोलूंगा क्योकि गाय मेरा विषय है । और इसलिए भी बोलूंगा क्योंकि इस पर एक अच्छे लेख की जरूरत है जिसे गाय चराने वाले ने लिखा हो ।
सबसे पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि गाय माँ कैसे है ? क्योंकि कईयो ने इस चक्कर में गाय से उसकी पशुता भी छीन ली है ।
किसी समय में हमारे पुरखो ने गाय के महत्व को देखकर इसे माँ कहा ।जो कि उस समय के लिए उचित था।लेकिन उन्हें क्या मालूम कि उनके नासमझ बेटे इस बात को इत्ती गंभीरता से लेंगे और गाय के लिए इंसान को मारने दौड़ेंगे ।
खैर जो हो,हमें यह देखना जरूरी है कि आज के संदर्भ में गाय का क्या महत्व है ।
बेशक इसमें कोई दोराय नही हो सकती कि एक समय मे गाय और बैल कृषि की रीढ़ थे।फ़सल बोने से लेकर काटकर मंडी तक पहुँचाने में गाय-बैल की प्रमुख भूमिका होती थी ।लेकिन क्या यह आज के लिए सार्थक है जबकि कृषि के इतने आधुनिक और अनगिनत उपकरण इज़ाद किये जा चुके हो ?
क्या आज कोई किसान अपना श्रम और समय देकर बैलों से खेत जोत सकता है ?क्या किसान केवल गाय की खाद पर इतना उत्पादन कर सकता है जितना रसायनिक खाद से करता है ?क्या आज किसान अपनी फ़सल बेलों पर लादकर बाजार ले जा सकता है ?कई महानुभाव कहते है कि शुद्धता के लिए यह आवश्यक है ।तो मै उन महानुभावो से कहना चाहता हूँ कि आप खुद अपने लिये खेती क्यो नही कर लेते ?क्योकि आज के समय में यह सबकुछ मुमकिन नहीं है और यह बात एक किसान ही जान सकता है ,न कि अरुण के. शर्मा की किताब पढ़ के TV पर यह कहने वाला कि किसानों को खेती ऑर्गेनिक मेनर (manure)से करनी चाहिए।मुझे लगता है कि ऐसे विद्वानों को खुद जैविक खेती करके उदाहरण पेश करना चाहिए ।किसान बेवकूफ नही है कि कमरतोड़ मेहनत करके जैविक खेती करेगा और उसे दाम वही मिलेगा जो सरकार तय करती है।और फिर वह सरकारों द्वारा सताया भी कम जाता है न?
                          तो सार यह कि खेती के लिहाज़ से आज के समय मे गाय-बैल का कोई महत्व नही है।
उल्टा यह रीढ़ की हड्डी अब अपेंडिक्स बन चुकी है।
खड़ी फसलों में आवारा पशु घुस जाते है और सब तबाह कर देते है।बड़े सांडो के लिए तो बाड़बन्दी भी कोई विशेष बाधा नही होती है ।और ऊपर से सरकार इनके लिए कानून भी बनाती है कि गाय और बैल को बांधना इनके साथ क्रूरता होती है और यह दंडनीय अपराध है । यानी ये स्वतंत्र रूप से कहीं भी चर सकते हैं।
 पशु क्रूरता अधिनियम 2017 ।मुझे लगता कि मनोरंजन के लिए आपको इससे बेहतर कही कुछ नही मिलेगा ।तो आप कभी बोर हो रहे होते हैं तो इसे पढिये क्योंकि इसमे मज़ाक के अलावा कुछ भी नही है।पता नहीं सरकार कैसे घुन्नो को कानून बनवाने के लिए बिठा देती है।कम-से-कम एकाध किसान को ही बिठा लेते।
हाल ही में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार बेलों की बढ़ती संख्या चिंतनीय है।अगर इसी प्रकार बेलों की संख्या बढ़ती रही और इनका कोई सदुपयोग या इंतज़ाम नही किया गया तो एक दिन ये इतने हो जाएंगे कि सारे देश की हरियाली चर जाये ।वैसे भी कई पशु और पौधें भी समय के साथ बेकार हो जाते है ।नीलगाय इसी का उदाहरण है ।खेतों में नीलगायों से परेशानी के कारण कई जगह इन्हें गोली से मारने के सरकारी आदेश भी मिल चुके है और उन्हें मारा भी गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश (BJP सरकार)में भी कई नीलगायों को मौत के घाट उतारा गया था ।
दूसरा,गाय का मुख्य उपयोग पशुपालन में है। लगभग सभी पशुपालक, पशुपालन पेशेवर तौर पर करते है।जाहिर है पसंदीदा तौर पर कोई क्यो गायों को पालेगा ?लेकिन सरकार को इतनी सी बात भी समझ मे नही आती ।क्योंकि इसी पशु क्रूरता अधिनियम 2017 के अनुसार "गाय के बछड़े से छीनकर दूध निकलना अपराध है "यानि जब तक बछड़ा दूध पीता है उसे पिने दे और बचा हुआ दूध निकाले !इस हिसाब से न जाने कितने गैरकानूनी काम आप और हम रोज़ करते है ।
         व्यापार की दृष्टि से भी अब गाय और बैल कोई काम के नही है।इस बार पशु मेले भी सुन्न रहे क्योकि कौन पशु व्यापारी पेशेवर गौरक्षक गुंडो के हाथों मरना चाहेगा?
शहरों में भी आवारा पशु एक प्रमुख समस्या है ।सड़क दुर्घटनाओ के कारणों का एक बड़ा प्रतिशत आवारा सांड है ।आवारा सांडो से न जाने कितनी ज़ाने रोज़ जाती है ।ये एक बड़ा मसला है ।सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और और इनका इंतजाम करना चाहिए ।अगर ऐसे ही इनकी रक्षा होती रही तो हमें खुद की रक्षा के विषय मे सोचना पड़ेगा क्योंकि "सांड हिन्दू-मुस्लिम नहीं करते", यक़ीन नही होता तो भागवत जी खुद किसी अच्छे सांड से रुबरू होकर देख सकते है ।
इतने झंझटों के बावजूद सरकार गाय के विषय पर इतनी सख्त क्यो है? अगर सरकार इतनी ही इस विषय पर गंभीर होती तो सरकार को सबसे पहले गांवो की गोचर भूमि की अवाप्ति को रद्द करना चाहिए था ,जिसका इतनी बड़ी बहसों में कहीं नाम तक नही लिया गया  बल्कि उल्टा राजस्थान सरकार तो इसे निजी हाथों में सौपने की तैयारी में है। या सरकार को गौशालाएं और कांजी हाउस खोलने चाहिए थे लेकिन आप बताइये की BJP की सरकार ने कितनी नयी गौशालाएं शुरू की ?या कुल सरकारी गौशालाएं ही कितनी है ? RSS की अपनी कितनी गौशाला है ?क्या यह हमें गाय के नाम पर बेवकूफ नही बनाया जा रहा ?अगर गायों की रक्षा असल मे इतनी बड़ी चिंता है तो 60 साल के कांग्रेस के शासनकाल के बाद गायों की संख्या चिंता का विषय नही होना चाहिए थी जो आज हरगिज़ नही है ?
ये हमारे साथ भद्दी सियासत खेली जा रही है क्योंकि हम जानते है कि सबसे बड़ा बीफ निर्यातक राज्य कोनसा है ?
सरकार चाहे तो गाय का सदुपयोग कर सकती और ये काफी कारगर भी हो सकता हैं लेकिन सरकार ऐसा क्यों करेगी जबकि यह राजनीतिक रुप से इतनी उपयोगी है । यह हिन्दू -मुस्लिम करने का सबसे बेहतर जरिया है ताकि सरकार,जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटका सके । अखलाक,पहलू खान ,जुनेद आदि कई इस हिन्दू-मुस्लिम की घिन्ही राजनीति का शिकार हो चुके है ।हाल ही में गोंडा में दीक्षित बंधुओं ने गौहत्या की है क्या यह गौहत्या ,गौहत्या नही है? शायद नही क्योकि यह हिंदुओ द्वारा की गई है । सोचिये अगर इनकी जगह कोई मुस्लिम होता तो क्या होता जबकि ये लोग(गौरक्षक गुंडे)मुस्लिम को केवल इस शक पर मार देते है कि यह गौतस्कर है जबकि वो होता गौपालक है?