Thursday 5 October 2017

Cow Politics

cow_politics


#StopCowPolitics
#StopMobLynching
#SaveFaming

गाय-वर्तमान समय का भारतीय राजनीति के संदर्भ में सबसे चर्चित विषय।
पहले यह जान लेना जरूरी है कि गौरक्षा के बारे में बड़ी बड़ी बातें करने वाले संघी विद्वान गाय के बारे में केवल इतना ही जानते है जितना हम बचपन मे अंग्रेजी के एसए में लिखतें थे कि गाय के चार पैर,दो कान ,दो सिंग और एक पूंछ होती है ।इसके अलावा इन्होंने गाय को कभी नजदीक से देखा तक नही होता लेकिन दो और बातें इन्हें बता दी जाती है कि-
         १.गाय हमारी माता है ।
         २.गाय में 36करोड़ देवी देवता निवास करते है
गाय को राजनीति में घसीटे जाने का एक कारण ,उन लोगों का चुप रहना भी है जो इस विषय पर बोलने के असली हक़दार है । औऱ ये चुप इसलिए है क्योंकि उनको कोई सुनता नही ।आखिर मीडिया वाले डिबेट हाउस में किसी अनपढ़ किसान को बिठाकर क्यो अपनी TRP खराब करेगा ?सब ज्ञान तो उन विद्वानों के पास जो है ।
"और जब जब किसी विषय पर ,उस विषय को जानने वाला नही बोलता तब कोई अनजान आकर उस विषय की ही ऐसी-तेसी कर देता है ।भारत की राजनीति भी इसी का शिकार है।"
गाय पर मैं बोलूंगा क्योकि गाय मेरा विषय है । और इसलिए भी बोलूंगा क्योंकि इस पर एक अच्छे लेख की जरूरत है जिसे गाय चराने वाले ने लिखा हो ।
सबसे पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि गाय माँ कैसे है ? क्योंकि कईयो ने इस चक्कर में गाय से उसकी पशुता भी छीन ली है ।
किसी समय में हमारे पुरखो ने गाय के महत्व को देखकर इसे माँ कहा ।जो कि उस समय के लिए उचित था।लेकिन उन्हें क्या मालूम कि उनके नासमझ बेटे इस बात को इत्ती गंभीरता से लेंगे और गाय के लिए इंसान को मारने दौड़ेंगे ।
खैर जो हो,हमें यह देखना जरूरी है कि आज के संदर्भ में गाय का क्या महत्व है ।
बेशक इसमें कोई दोराय नही हो सकती कि एक समय मे गाय और बैल कृषि की रीढ़ थे।फ़सल बोने से लेकर काटकर मंडी तक पहुँचाने में गाय-बैल की प्रमुख भूमिका होती थी ।लेकिन क्या यह आज के लिए सार्थक है जबकि कृषि के इतने आधुनिक और अनगिनत उपकरण इज़ाद किये जा चुके हो ?
क्या आज कोई किसान अपना श्रम और समय देकर बैलों से खेत जोत सकता है ?क्या किसान केवल गाय की खाद पर इतना उत्पादन कर सकता है जितना रसायनिक खाद से करता है ?क्या आज किसान अपनी फ़सल बेलों पर लादकर बाजार ले जा सकता है ?कई महानुभाव कहते है कि शुद्धता के लिए यह आवश्यक है ।तो मै उन महानुभावो से कहना चाहता हूँ कि आप खुद अपने लिये खेती क्यो नही कर लेते ?क्योकि आज के समय में यह सबकुछ मुमकिन नहीं है और यह बात एक किसान ही जान सकता है ,न कि अरुण के. शर्मा की किताब पढ़ के TV पर यह कहने वाला कि किसानों को खेती ऑर्गेनिक मेनर (manure)से करनी चाहिए।मुझे लगता है कि ऐसे विद्वानों को खुद जैविक खेती करके उदाहरण पेश करना चाहिए ।किसान बेवकूफ नही है कि कमरतोड़ मेहनत करके जैविक खेती करेगा और उसे दाम वही मिलेगा जो सरकार तय करती है।और फिर वह सरकारों द्वारा सताया भी कम जाता है न?
                          तो सार यह कि खेती के लिहाज़ से आज के समय मे गाय-बैल का कोई महत्व नही है।
उल्टा यह रीढ़ की हड्डी अब अपेंडिक्स बन चुकी है।
खड़ी फसलों में आवारा पशु घुस जाते है और सब तबाह कर देते है।बड़े सांडो के लिए तो बाड़बन्दी भी कोई विशेष बाधा नही होती है ।और ऊपर से सरकार इनके लिए कानून भी बनाती है कि गाय और बैल को बांधना इनके साथ क्रूरता होती है और यह दंडनीय अपराध है । यानी ये स्वतंत्र रूप से कहीं भी चर सकते हैं।
 पशु क्रूरता अधिनियम 2017 ।मुझे लगता कि मनोरंजन के लिए आपको इससे बेहतर कही कुछ नही मिलेगा ।तो आप कभी बोर हो रहे होते हैं तो इसे पढिये क्योंकि इसमे मज़ाक के अलावा कुछ भी नही है।पता नहीं सरकार कैसे घुन्नो को कानून बनवाने के लिए बिठा देती है।कम-से-कम एकाध किसान को ही बिठा लेते।
हाल ही में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार बेलों की बढ़ती संख्या चिंतनीय है।अगर इसी प्रकार बेलों की संख्या बढ़ती रही और इनका कोई सदुपयोग या इंतज़ाम नही किया गया तो एक दिन ये इतने हो जाएंगे कि सारे देश की हरियाली चर जाये ।वैसे भी कई पशु और पौधें भी समय के साथ बेकार हो जाते है ।नीलगाय इसी का उदाहरण है ।खेतों में नीलगायों से परेशानी के कारण कई जगह इन्हें गोली से मारने के सरकारी आदेश भी मिल चुके है और उन्हें मारा भी गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश (BJP सरकार)में भी कई नीलगायों को मौत के घाट उतारा गया था ।
दूसरा,गाय का मुख्य उपयोग पशुपालन में है। लगभग सभी पशुपालक, पशुपालन पेशेवर तौर पर करते है।जाहिर है पसंदीदा तौर पर कोई क्यो गायों को पालेगा ?लेकिन सरकार को इतनी सी बात भी समझ मे नही आती ।क्योंकि इसी पशु क्रूरता अधिनियम 2017 के अनुसार "गाय के बछड़े से छीनकर दूध निकलना अपराध है "यानि जब तक बछड़ा दूध पीता है उसे पिने दे और बचा हुआ दूध निकाले !इस हिसाब से न जाने कितने गैरकानूनी काम आप और हम रोज़ करते है ।
         व्यापार की दृष्टि से भी अब गाय और बैल कोई काम के नही है।इस बार पशु मेले भी सुन्न रहे क्योकि कौन पशु व्यापारी पेशेवर गौरक्षक गुंडो के हाथों मरना चाहेगा?
शहरों में भी आवारा पशु एक प्रमुख समस्या है ।सड़क दुर्घटनाओ के कारणों का एक बड़ा प्रतिशत आवारा सांड है ।आवारा सांडो से न जाने कितनी ज़ाने रोज़ जाती है ।ये एक बड़ा मसला है ।सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और और इनका इंतजाम करना चाहिए ।अगर ऐसे ही इनकी रक्षा होती रही तो हमें खुद की रक्षा के विषय मे सोचना पड़ेगा क्योंकि "सांड हिन्दू-मुस्लिम नहीं करते", यक़ीन नही होता तो भागवत जी खुद किसी अच्छे सांड से रुबरू होकर देख सकते है ।
इतने झंझटों के बावजूद सरकार गाय के विषय पर इतनी सख्त क्यो है? अगर सरकार इतनी ही इस विषय पर गंभीर होती तो सरकार को सबसे पहले गांवो की गोचर भूमि की अवाप्ति को रद्द करना चाहिए था ,जिसका इतनी बड़ी बहसों में कहीं नाम तक नही लिया गया  बल्कि उल्टा राजस्थान सरकार तो इसे निजी हाथों में सौपने की तैयारी में है। या सरकार को गौशालाएं और कांजी हाउस खोलने चाहिए थे लेकिन आप बताइये की BJP की सरकार ने कितनी नयी गौशालाएं शुरू की ?या कुल सरकारी गौशालाएं ही कितनी है ? RSS की अपनी कितनी गौशाला है ?क्या यह हमें गाय के नाम पर बेवकूफ नही बनाया जा रहा ?अगर गायों की रक्षा असल मे इतनी बड़ी चिंता है तो 60 साल के कांग्रेस के शासनकाल के बाद गायों की संख्या चिंता का विषय नही होना चाहिए थी जो आज हरगिज़ नही है ?
ये हमारे साथ भद्दी सियासत खेली जा रही है क्योंकि हम जानते है कि सबसे बड़ा बीफ निर्यातक राज्य कोनसा है ?
सरकार चाहे तो गाय का सदुपयोग कर सकती और ये काफी कारगर भी हो सकता हैं लेकिन सरकार ऐसा क्यों करेगी जबकि यह राजनीतिक रुप से इतनी उपयोगी है । यह हिन्दू -मुस्लिम करने का सबसे बेहतर जरिया है ताकि सरकार,जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटका सके । अखलाक,पहलू खान ,जुनेद आदि कई इस हिन्दू-मुस्लिम की घिन्ही राजनीति का शिकार हो चुके है ।हाल ही में गोंडा में दीक्षित बंधुओं ने गौहत्या की है क्या यह गौहत्या ,गौहत्या नही है? शायद नही क्योकि यह हिंदुओ द्वारा की गई है । सोचिये अगर इनकी जगह कोई मुस्लिम होता तो क्या होता जबकि ये लोग(गौरक्षक गुंडे)मुस्लिम को केवल इस शक पर मार देते है कि यह गौतस्कर है जबकि वो होता गौपालक है?

Wednesday 27 September 2017

economy now a day

yashwant sinha_bjp

यशवंत सिन्हा का इंडियन एक्सप्रेस में छपा लेख इस बात की पुष्टि करता है कि हमे अब तक BJP सरकार बेवकूफ बनाती रही थी और अब भी बना रही है ।उनके इस लेख से यह भी स्पष्ट होता है कि यह सब कुछ कैसे किया जा रहा था ।
यशवंतसिन्हा BJP के पूर्व मंत्री रह चुके है जिसमें उन्होंने अटल सरकार में वित्त व विदेश जैसी प्रमुख जिम्मेदारीया निभाई थी ।आजकल उनके बेटे जयंत सिन्हा भी कैबिनेट मंत्री है ।अब पता नही उनका क्या हाल होगा क्योंकि उनका पहले भी यशवंत सिन्हा के कारण ही डिमोशन हो चुका है।उन्होंने अपने लेख के शुरुआत में ये कहा है कि- अगर अब भी मैं भारत के वित्तमंत्री द्वारा,भारत की अर्थव्यवस्था में की गई गड़बड़ी के बारे में नही बोलता हूं तो यह मेरा राष्ट्र धर्म मे असफल हो-जाना होगा
खैर जो भी हो , यशवंतसिन्हा ने अपने इस लेख में जिन मुद्दों को लिया है उन्हें मोटे तौर पर ऐसे समझ सकते है-

1.जेटली के अमृतसर से हार जाने के बावजूद उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया (यानी जीतना कोई मायने नही रखता )।
वित्त मंत्रालय ऐसा मंत्रालय होता हैं जिसे 24×7 समय देने पर भी संभालना मुश्किल होता है लेकिन जेटली किसी सुपरमैन की तरह वित्त के अलावा भी तीन और मंत्रालय संभाल लेते है ।यह उनकी काम के प्रति निष्ठा को जाहिर करता है क्योंकि यदि ईमानदारी से काम किया जाए तो वित्तमंत्री को कुछ भी अलग करने का समय नही मिलता ।

2.जेटली बहुत भाग्यशाली वित्तमंत्री है जिन्हें वैश्विक बाजार में क्रूड ऑयल के इतने समृद्ध समय मे काम करने का मौका मिला लेकिन वे इसका कोई फायदा नही दे सके ।

3. आज भारत की अर्थव्यवस्था की तस्वीर कुछ ऐसी है---निजी क्षेत्र में निवेश पिछले दो दशक में सबसे                कम हुआ है।
   ----कृषि संकट में है ।
  ----निर्माण उद्योग,सेवा क्षेत्र और मजदूर निराश है।             ----कई नौकरियां और नए अवसर खत्म हो गए है।

4.इन सब (3) का कारण नोटबंदी और गलत तरीके से लागू की गई GST है ।

5.GDP तीन साल में सबसे हासिये पर है ।
  ★ 2015 में सरकार द्वारा GDP की गणना करने के सूत्र को बदल दिया गया है यानी अब जो GDP हमें 5.7% बतायी जाती है असल मे वो 3.7% या इससे कम होती है।

6.राज्य सरकारों द्वारा ऋण माफ़ी के नाम पर किसानों के साथ धोखा किया गया है जिसमे उनका 1 पैसे से कुछ रुपयो तक का ऋण माफ किया गया है।

7.देश की कई शीर्ष कंपनियां दिवालियापन झेल रही है ।बड़ी राशि पर उस राशि के आधे ज्यादा को टैक्स रूप में देना पड़ रहा है।

8.नकद का आवागमन ठप हो चुका है जिसका नतीजा मंझोले कारोबारियों को भुगतना पड़ रहा है ।

9.जब हम विपक्ष में थे तब छापो के सख्त खिलाफ थे और आज छापा रोज़ का काम हो गया है ।

10.★प्रधानमंत्री कहते हैं कि उन्होंने गरीबी को करीब से देखा है और अब वित्त मंत्री देश के हर नागरिक को गरीबी करीब से दिखाना चाहते हैं।

तो जाहिर तौर पर यशवंतसिन्हा ने मोदी सरकार की नीतियों का विरोध किया है जिसमे नोटबंदी भी शामिल हैं । लगभग हर बड़े अर्थशास्त्री ने भी नोटबंदी को असफल बताया है ।अब भी अगर आपको कोई नेता नोटबंदी की तारीफ करता मिले तो वह आपका हितेषी तो कतई नही हो सकता बल्कि आपको यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह आपको बेवकूफ बना रहा है।तो आप बेवकूफ बनने से बचें ,अपनी आंखों से देखें ,अपने विवेक से काम ले और न ही अपनी आँखों को बंद करें क्योंकि आँख बंद करने से सामने जो संकट है वो समाप्त नही हो जाता ।

Monday 25 September 2017

BHU

Save university Save BHU
#SaveBHU


वर्तमान सरकार को  तीन साल लगभग हो चुके हैं जनता को बेवकूफ बनाने के अलावा इस सरकार की और कोई खास उपलब्धि रही नही । बेरोजगारी, ,भ्रष्टाचार और महंगाई अपनी जगह पर काबिज़ है,जैसा लगभग हर सरकार में होता रहा है ।लेकिन एक काम जिसे यह सरकार या केवल यही सरकार कर रही है और वो है-सवैंधानिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर प्रहार। शिक्षा से इस सरकार की लगभग दुश्मनी रही हैं ।शैक्षिक बजट को गौ रक्षा बजट से भी कम रखा जाना इस हक़ीक़त को साफ़ जाहिर करता है।लेकिन सँयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान पर हमला बोलने के लिए ये शिक्षा का सहारा जरूर लेते है। IIT,IIM नेहरू के सपनों का परिणाम है।BJP सरकार ने अपने कार्यकाल में कितने नये IIT,IIM बनाये ?यह सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने जितने बनाए उनसे ज्यादा शायद बंद करवाये है ।जिस सरकार को शिक्षा से ज्यादा जानवरों की चिंता रहती हैं उससे यही उम्मीद की जा सकती है।
 भारत में ग़रीबी ,आरक्षण और जाति का राजनीतिक इस्तेमाल होना आम बात रहा है।लेकिन इस सरकार ने विश्वविद्यालयों का राजनीतिक इस्तेमाल किया ,जो शायद इस देश मे पहली बार हुआ है और यह शायद सबसे खतरनाक भी है ।
छात्रों का इस सरकार के प्रति सबसे ज्यादा रोष रहा है(भक्त छात्रों को छोड़कर),जो स्वाभाविक है क्योकि विश्वविद्यालयों में सरकार अपनी पार्टी के व्यक्ति को वाइस चांसलर नियुक्त करती है जो विश्विद्यालय के ढांचे को तोड़ने का काम करता है जो असहनीय है। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय,FTII , दिल्ली विश्वविद्यालय,जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय,जादवपुर  विश्वविद्यालय, आईआईटी मद्रास और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आदि जो देश के प्रमुख विश्विद्यालय है उनका इस तरह से इस्तेमाल हो चुका है ।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से GSCASH जैसी संस्था को तोड़ना ,जो पूरे देश की सबसे आधुनिक और सबसे कारगर लैंगिक भेदभाव को खत्म करने वाली प्रणाली रही है, इस सरकार की(क्योंकि VC सरकारी ही है) घटिया मानसिकता को उज़ागर करती है ।इससे साफ जाहिर होता हैं कि सरकार GSCASH नही बल्कि JNU को तोड़ना चाहती है क्योंकि वहाँ विद्यार्थी पढ़ लेते है और पढ़े-लिखे लोग सरकार को पसन्द नही क्योंकि ऐसा होने पर उनकी दुकानें बंद हो जाती हैं।
BHU में पिछले एक सप्ताह से छात्राएं हड़ताल पर है।कैंपस में उनके साथ लड़को द्वारा बदसलूकी की जाती है,उनका पीछा किया जाता है,उनके होस्टल के आगे लड़के पहरे देते है और वो सब कुछ होता है जो एक विश्वविद्यालय के संदर्भ में सोचा भी नही जा सकता लेकिन छात्राओं के बार बार शिकायत के बावजूद प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नही की जाती बल्कि उल्टा उन पर लाठियां भांजी जाती है।
एक विश्वविद्यालय जिसके नाम में 'हिन्दू' है,हिंदू-जिस धर्म मे महिलाओं को देवी माना जाता है ,में इस तरह की घटनाएं काफ़ी कुछ उज़ागर कर जाती है।शायद सबकुछ-कि महिलाओं को कितना देवी माना जाता है।
इस सब के संदर्भ में BHU के महान VC और हिन्दू धर्म के प्रख्यात पंडित का बयान सुनने योग्य हैं जो यह बताते है कि देवी को शाम होने से पहले होस्टल के कमरे में कुंडी लगाकर बैठ जाना चाहिए!!.....शर्मनाक,....घटिया.....वाहियात...●●


हड़ताल करने वाली छात्राओं को अब निलंबित भी कर दिया गया है ।लेकिन गोदी मीडिया अब तक सरकार के गुनगान में व्यस्त है ।
लड़कियों पर पुरूष पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करवाना-इससे बड़ा जुर्म, इससे घटिया कोई काम ,इससे बद्दतर बर्बरता कुछ हो ही नही सकती ......वाह रे नपुंसको !
                                         ...वाह रे ! धर्म के ठेकेदारों
अगर यही धर्म है,तो मुझे शर्म है..कि.......

Wednesday 13 September 2017

किसान आंदोलन

#kisaan aandolan
किसान -एक ऐसी मजबूरी,जो अपनी मौत नही मर रही । तंगहाल जीवन,कर्जे का बोझ ,सरकारों का शोषण उसे आत्महत्या करने को विवश कर देता है।
मार्क्स ने ठीक कहा था दुनिया के गरीबो इक्कठे हो जाओ क्योकि आपके पास खोने को कुछ नही है।
मर तो वैसे भी रहे है,हरित क्रांति कोई फायदा नही दे रही है चलो लाल क्रांति करते है ।
लेकिन इसके लिए अच्छे नेता की जरूरत होती है जो इस लायक हो। और शायद ऐसे नेताओं की कमी है ।जब-जब कोई ऐसा करने की हिम्मत करता है उसे मार दिया जाता है ,मार कर भी भुलाने की साजिश होती है ।मुक्तिबोध इनमे से एक है,अभी उनकी जयंती थी लेकिन सरकार ने उनको याद करना तो दूर उनके स्टेच्यू को भी खंडित करवा दिया ।अक्सर जब-जब सरकारे बदलती है तो महापुरुष भी बदल जाते है।लेकिन ये बड़ी विचित्र सरकार है जो गरीबों,किसानों के लिए लिखने वाले एक कवि को नजरअंदाज करती हैं और गांधी के हत्यारों की जयंती मनाती है । गाँधी का सपना था कि अमीर ग़रीब के बीच की खाई कम हो तभी देश तरक्की कर सकेगा।गाँधी को मार दिया अब सरकार उनके सपनों को मार रही है -भूखे, बेघर,गरीब, किसानों पर बुलेट ट्रेन चलाकर ।
जिस देश की आधी आबादी भूखी सोती हो,किसान आत्महत्या कर रहे हो, उस देश की सरकार की क्या प्राथमिकता  होनी चाहिए ये एक बच्चा भी बता सकता है। बेशक बुलेट ट्रेन तो हरगिज़ नही ।
एक और काम जो सरकार बेहतर तरीके से कर रही है वो है- लोगो को बेवकूफ बनाना।सरकार की योजनाएं ऐसी रहती है जो बाहरी तौर पर बड़ी अच्छी लगती है लेकिन भीतर से खोखली ।क्योकि सरकार जानती है कि इस देश के लोगो को बेवकूफ बनाना आसान है ।यहाँ केवल योजना का उद्देश्य ही देखा जाता है,उसके नियम ,निष्कर्ष और परिणाम कोई नही देखता ।नोटबन्दी इसका अच्छा उदाहरण है ।UP में कर्जमाफी भी इसमें से ही एक है जहाँ UP के गरीब किसानों के साथ बेहूदा मज़ाक की गई ।
सीकर किसान आंदोलन 14 दिन चला लेकिन मीडिया जानबूझकर अनजान रहा क्योंकि किसान tv नहीं देखते और न ही अंग्रेजी अखबार पढ़ते है,यह मीडिया की नपुंसकता है। खैर अब मीडिया ,मीडिया नही रहा क्योकि मीडिया का काम सत्ता को आईना दिखाना होता है न कि सरकार के तलवे चाटना ।गोदी मीडिया से यह उम्मीद करना भी बेमानी होगा। लेकिन अब मीडिया खूब चिल्लाएगा की सरकार ने 50 हजार तक कर्ज़ माफ कर दिया लेकिन जो हकीकत बताना मीडिया का काम है उससे शायद अनजान ही है कि कर्ज माफी अंतिम समाधान नहीं है।यह घाव पर मरहम जरूर है लेकिन घाव अब भी बरकरार है और यह तभी भर सकता है जब स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार फसलो की लागत उत्पादन मूल्य से डेढ़ या दो गुना तय हो जाय ।और यही इस आंदोलन की ग्यारह सूत्री मांगों में प्रमुख था जिसे सरकार ने एक बार फिर बेहद चालाकी से  टाल दिया और इसे कर्ज़माफी से ढक दिया। कर्ज़माफी  ग्यारह सूत्री मांगों में शायद इतना महत्वपूर्ण भी नही था ।
कर्ज़माफी ऊंठ के मुँह में ज़ीरा है।एक बार कर्ज माफ हो जाने से किसान की हालात अच्छी हो जाएगी, ऐसा सम्भव नही है क्योंकि कर्ज़माफी से फसलों का नष्ट होना नही रूक जाता ।
फिर इस आंदोलन से मिला क्या? यह सोचने वाली बात है।नेताओ को श्रेय चाहिये था और राजनीति चमकानी थी वो काम जरूर पूरा हुआ है और अंतिम समाधान नही मिलने से उन्हें अगले आंदोलन के लिए जमीन भी मिल गयी ।
किसान आखिर माँग ही क्या रहे थे ?यही ना कि उनके द्वारा उत्पादित फ़सल की रेट वे खुद तय करे ?जानलेवा वस्तुओं की कीमत भी जब उनकी कंपनी तय कर सकती है तो अन्न ,जो हमारी पहली आवश्यकता है,की कीमत अन्नदाता क्यों तय नहीं कर सकता ?   2014 के चुनाव में नरेन्द्रमोदी बार-बार कहते रहे थे कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती हैं तो वह स्वामीनाथन आयोग को दुरस्त करेंगी ।लेकिन सरकार बनने के बाद स्वामीनाथन कमीशन को लागू करना तो दूर की बात ,कृषि को ही राज्य का विषय बताकर किसानों के विरोध को भी नही सुना जा रहा है। क्या चुनाव से पहले उन्हें नही मालूम था कि कृषि राज्य सरकार का विषय है? किसानों और गरीबो का इसी तरह इस्तेमाल होता है।जंतर मंतर पर आए दिन किसान मुँह में चूहे डालकर, सड़को पर प्याज़, टमाटर उड़ेलकर बता रहे है कि हम मर रहे है और सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही ।
कृषि बीमा योजना का ढ़िढोरा सरकार जरूर पिट रही है लेकिन इसमें भी किसानो को नियमों के फेर में उलझाकर बेवकूफ़ ही बनाया जा रहा है।अब तो किसानों को अकाल,अतिवृष्टि के नाम पर मिलने वाला मुआवजा भी नही मिल रहा।खाद बीज भी किसान तक पहुँचते पहुँचते बीच मे ही पूरा हो जाता हैं।
जो किसान मौसमी खेती पर निर्भर रहते है वे बाकी समय बेरोजगार रहते है क्योंकि अब मनरेगा की हालत भी कांग्रेस जैसी हो गयी है।पहले पशुपालन उनका सहारा था गौरक्षा के नाम पर अब उसे भी छीन लिया है।आवारा पशु भी एक बड़ा मुद्दा है।सरकार न तो खुद इन पशुओं के लिए कोई इंतजाम करती है और न ही किसी को करने देती है इसलिए ये पशु किसानों के लिए नाक का नासूर बनें हुए है
  बिजली की बढ़ी हुई दरों और टोल टैक्स में ही किसान पूरे नही पड़ पा रहा और डार्क जोन और ज्यादा मुश्किले बढ़ा रहा है।
जब इन सब बातों को सरकार नही सुन पाती हैं तो शायद इसके अलावा कोई विकल्प नही बचता कि हम इक़बाल का यह गीत गाये और न सिर्फ गाए बल्कि अमल भी करें.....#क्रांति...

उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो

गरमाओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से
कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो

सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो

क्यों ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ में हायल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से हटा दो

मैं नाख़ुश-ओ-बेज़ार हूँ मरमर के सिलों से
मेरे लिये मिट्टी का हरम और बना दो

तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मश्रिक़ को सिखा दो

Monday 11 September 2017

attack on freedom of speech

freedom of speech blog
#IAmGauri
#WeAreNotAfraid
चुप रहना वरना मार दिए जाओगे और अगर बोलना ही है तो सरकार का गुनगान करो क्योकि अगर सरकार के खिलाफ बोले तो तो वही हाल होगा जो शाहिद आज़मी, प्रो. कलबुर्गी ,गोविन्द पंसारे, नरेन्द्र दाभोलकर और गौरी लंकेश का हुआ ।

जब किसी देश मे पत्रकारों और सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने वालो को मार दिया जाता है तब आप इस बात से खुश मत होइए की हम लोकतंत्र में रह रहे है । लोकतंत्र तभी मर जाता है जब विपक्ष को मार दिया जाता है। सरकार की प्रशंसा के कसीदे पढ़कर तो तानाशाही में भी रहा जा सकता है।
 आज सरकार हमे उस रास्ते से उस मंजिल तक ले जा रही है जिसमें हमे पहले  कलबुर्गी,गौरी लंकेश जैसे डोज़ दे देकर एमरजेंसी जैसी हालात तक पहुँचाया जाएगा और फिर तानाशाही की मंज़िल मुक्कमल होगी ।
  आज गोली और गाली वाली फौजे सक्रिय है। गाली वाली फौज में सरकार के वे अंधभक्त भर्ती है जो सरकार के खिलाफ बोलने वाले को गाली देकर और धमकी देकर चुप कराते है और जब उनसे वे चुप नही होते है तब गोली वाली फौजे आती है और अपना काम करती है । इस बात का इससे अच्छा सबूत क्या होगा जबकि हमारे प्रधानमंत्री खुद ऐसे सख्स को फॉलो करते है जिसने गौरी लंकेश को मारे जाने के बाद भी उसे ही कुतिया कहा । यह हमारे लिए राष्ट्रीय शर्म की बात है सवा सौ करोड़ के देश का नायक ऐसे सख्स को फॉलो करता है जो एक महिला को गाली देता हो और वो भी उसे मारे जाने के बाद ।
    आज सोशल मीडिया जहरीली बातों से भरा पड़ा है ,भड़काऊ बातों और फेक न्यूज़ से लोगों की जाने जा रही है और यह काम प्रोफेशनल तरीके से हो रहा है ,इसका भी खुलासा हो चुका है ।मीडिया योगी जी के बालों का राज बताने में और उनके नाई से इंटरव्यू करने में व्यस्त है ।जो एक दो हिम्मत करके बोलते है उन्हें देशद्रोही बताया जाता है,गालिया दी जाती है,धमकियां दी जाती है,उनके परिवार वालो को परेशान किया जाता है और फिर उनको गोली मार के मार दिया जाता है ।
     आप चेतिये ,जो असल मे आपके लिए बोल रहे है ,इस देश के लिए बोल रहे है उनका साथ दीजिए वरना शायद ही कोई बचेगा जो आपके लिए बोलें।ऐसे लेखों को ,ऐसे मेसेज को कम-से-कम आगे तो मत भेजिए जो भड़कीले हो ,जिनमे नफरत भरा हो,जो आधारहीन हो,फेक हो ।क्योंकि अगर आप ऐसा करते हो और आपके उस मेसेज से किसी की जान जाती है तो आप भी उसके क़ातिल है।कोई भी धर्म या मजहब जब कट्टर हो जाता है तो ज्यादा नही टिक पाता इसलिए आप अपने धर्म के कट्टर बन कर ज्यादा खुश मत होइए आप उसका विनाश ही कर रहे है ।
       अगर एक महिला पत्रकार की हत्या होती है और आप चुप रहते है तो यह भी गलत है।आप किसी भी धर्म ,पंथ या विश्वास से है,किसी भी सभा ,संस्था या संघ से है ये कोई मायने नही रखता लेकिन जब लोकतंत्र की हत्या हो तो आप बोलें वरना आप अपने  बेटों,पोतों को शायद लोकतांत्रिक देश नही दे पाएंगे ।